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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2678
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

प्रश्न- डॉ. नगेन्द्र एवं हिन्दी आलोचना पर एक निबन्ध लिखिए।

अथवा
"डॉ. नगेन्द्र का हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में अप्रतिम योगदान है।' इस कथन की पुष्टि कीजिए।
अथवा
"डॉ. नगेन्द्र को रसवादी आलोचक कहा जाता है।' क्यों? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -

डॉ. नगेन्द्र ने हिन्दी आलोचना को व्यावहारिक एवं सैद्धान्तिक दोनों दृष्टियों से सम्वर्द्धित किया है। वे रसवादी आलोचक हैं। इस सिद्धान्त में इसकी सांगोपांग विवेचना करते हुए उन्होंने इसे पुनः प्रतिष्ठित करने का पाण्डितापूर्ण प्रयास किया है। रसवाद पर जितना एकान्तिक आग्रह नगेन्द्र जी का दिखाई पड़ता है, उतना अन्य किसी आलोचकों का नहीं। यदि वाजपेयी जी, द्विवेदी जी और डॉ. नगेन्द्र की आलोचनाओं का वृत्त बनाया जाये तो बाजपेयी जी की स्थिति मध्य में ठहरती है। उनकी वृत्त परिधि एक ओर द्विवेदी जी की वृत्त परिधि को स्पर्श करती है, तो दूसरी ओर डॉ. नगेन्द्र की। द्विवेदी जी और नगेन्द्र की परिधियाँ एक-दूसरे से अछूती रह जाती हैं। द्विवेदी जी की मानवतावादी समीक्षा में साहित्येत्तर तत्वों की बहुज्ञता है। वाजपेयी जी साहित्यिक मूल्यों पर बल देते हुए भी यथास्थान साहित्येत्तर मूल्यों का प्रयोग करते हैं, किन्तु नगेन्द्र जी एकान्ततः साहित्यिक समीक्षा सिद्धान्तों के पक्षपाती हैं। साहित्येत्तर मूल्यों से उनका सम्बन्ध नहीं है।

सर्वप्रथम छायावादी आलोचक के रूप में ही उन्हें ख्याति मिली। प्रीति और विस्मय से सम्वित छायावादी काव्य की अन्तर्मुखी साधना, सौन्दर्य चेतना और कलात्मक छवियों के प्रति वे विशेष आकृष्ट थे। 'सुमित्रानन्दन पंत' इसी मनोदशा का परिणाम है। इसके विपरीत 'साकेत : एक अध्ययन' में उनकी शास्त्रीय अभिरुचि व्यक्त हुई है। 'रीतिकाव्य की भूमिका' तथा 'देव और उनकी कविता' के लिए अध्ययन लेखन क्रम में उनकी रसवादी दृष्टि पूर्णतः पुष्ट हो गयी। किन्तु संस्कृत काव्यशास्त्र में विवेचित रस को उन्होंने ज्यों का त्यों स्वीकार नहीं किया अपितु उसके विवेचन में मनोविज्ञान की पूरी सहायता ली। 'आधुनिक हिन्दी नाटक', 'विचार और अनुभूति', 'आधुनिक हिन्दी कवितां की मुख्य प्रवृत्तियाँ आदि ग्रन्थों में उनकी तीखी मनोवैज्ञानिक दृष्टि को सहज ही पाया जा सकता है। इसीलिए कुछ लोगों ने इन्हें भ्रमवश फ्रायडवादी आलोचक कहा है। इसमें सन्देह नहीं कि फ्रायडीय मनोविज्ञान का उन पर गहरा प्रभाव है, लेकिन यह स्वयंसाध्य न होकर रसवाद का साधन है।

रसवाद पर अपनी दृष्टि केन्द्रित करके भी नगेन्द्र जी आधुनिक साहित्य और समसामयिक आन्दोलनों से बराबर सम्पृक्त रहे हैं। जहाँ उन्होंने 'कामायनी के अध्ययन की समस्याएँ (1962) ग्रन्थ की रचना की वहीं वे नयी कविता, उपन्यासों और कहानियों को भी समय-समय पर मूल्यांकित करते रहे हैं। 'नयी समीक्षा नये सन्दर्भ' में मूल्यों का विघटन, सांस्कृतिक संकट, आधुनिकता का प्रश्न आदि ज्वलन्त विषयों पर भी उन्होंने विचार व्यक्त किये हैं। नये से नये विषयों से उलझते रहने के कारण उनकी रसवादी दृष्टि में एक नया सन्तुलन आया है, इसी कारण वे रस-सिद्धान्त के आयामों के विस्तार का आग्रह करते हैं। रस या आनन्द के प्रति उनके आग्रह से यह शंका हो सकती है कि क्या वे जीवन और जगत को साहित्य से अनिवार्यतः संपृक्त नहीं मानते? इस सम्बन्ध में उनका विचार है कि समाज का तिरस्कार करने से लेखक की आत्मा की क्षति होगी किन्तु जब तक वह निश्छल नहीं हो सकती। वस्तुतः उनका आग्रह परिष्कृत आनन्द और निश्छल आत्माभिव्यक्ति के प्रति है। इसके साथ ही उन्होंने कवि के व्यक्तित्व पर भी जोर दिया है, जिसका अर्थ है छायावादी मान्यताओं की स्वीकृति। जिस काव्यान्दोलन के उनके आलोचक व्यक्तित्व के निर्माण में उल्लेखनीय योगदान किया हो, उससे प्रभावित न होना, अस्वाभाविक होना। नगेन्द्र जी परिष्कृत आनन्दानुभूति में ही नैतिक मूल्यों का समावेश कर लेते हैं। उनका यह सिद्धान्त रिचर्ड्स के मूल्य-सिद्धान्त के समानान्तर दिखाई पड़ता है रिचर्ड्स से अनुसार भी काव्य का मूल्य नैतिकता से सम्बद्ध न होकर अन्तर्वृत्तियों के सामंजस्य पर निर्भर करता है। 'भारतीय सौन्दर्यशास्त्र की भूमिका' शार्षक अपने नवीनतम ग्रन्थ में उन्होंने हिन्दी . समीक्षक के अन्य अभाव की पूर्ति की है।

नगेन्द्र जी की व्यावहारिक आलोचना तथा सैद्धान्तिक आलोचना में प्रतिकार एकसूत्रता दिखाई पड़ती है। उन्होंने पूर्व और पश्चिम के महत्वपूर्ण काव्यशास्त्रों का हिन्दी अनुवाद करने- कराने में सबसे अधिक योग दिया है। उनकी प्रेरणा से आश्चर्य विश्वेश्वर ने 'अभिनव भारती', 'वक्रोक्तिजीवित', 'ध्वन्यालोक', 'नाट्यदर्पण', 'काव्यप्रकाश' आदि को हिन्दी में अनूदित किया। पाश्चात्य काव्यशास्त्र के कुछ क्लासिक ग्रन्थों के अनुवाद भी उनकी देख-रेख में हुए हैं - 'अरस्तू का काव्यशास्त्र', 'काव्य में उदात्त तत्व' (लौंगिनुस के 'द सब्लाइम' का अनुवाद) और 'काव्य- कला ‘होरेस की ‘आर्स पोयतिका' का अनुवाद का प्रकाशन हो चुका है। सेन्ट्सबरी के 'लोसाई क्रिटिकाई' की पद्धति पर उन्होंने 'पाश्चात्य काव्यशास्त्र की परम्परा' शीर्षक ग्रन्थ का सम्पादन किया है जिसमें यूरोप के प्रतिनिधि आलोचकों के मुख्य सिद्धान्तों का संकलन हुआ है। इन अनुवादों से दो लाभ हुए एक तो यह कि अब हिन्दी का समीक्षक अनूदित मूल्य ग्रन्थों के सम्यक् अध्ययन-विश्लेषण द्वारा अपनी स्वतन्त्र मान्यताएँ बना सकता है और दूसरा यह कि इससे स्वयं नगेन्द्र जी को अपने समीक्षा-सिद्धान्तों को सन्तुलित और समन्वित बनाने के लिए वृहत् आयाम मिल गया।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आलोचना को परिभाषित करते हुए उसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकासक्रम में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की आलोचना पद्धति का मूल्याँकन कीजिए।
  5. प्रश्न- डॉ. नगेन्द्र एवं हिन्दी आलोचना पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- नयी आलोचना या नई समीक्षा विषय पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन आलोचना पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- द्विवेदी युगीन आलोचना पद्धति का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- आलोचना के क्षेत्र में काशी नागरी प्रचारिणी सभा के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- नन्द दुलारे वाजपेयी के आलोचना ग्रन्थों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- हजारी प्रसाद द्विवेदी के आलोचना साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  12. प्रश्न- प्रारम्भिक हिन्दी आलोचना के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  13. प्रश्न- पाश्चात्य साहित्यलोचन और हिन्दी आलोचना के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  14. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- आधुनिक काल पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  17. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उसकी प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख भर कीजिए।
  21. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के व्यक्तित्ववादी दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  22. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद कृत्रिमता से मुक्ति का आग्रही है इस पर विचार करते हुए उसकी सौन्दर्यानुभूति पर टिप्णी लिखिए।
  23. प्रश्न- स्वच्छंदतावादी काव्य कल्पना के प्राचुर्य एवं लोक कल्याण की भावना से युक्त है विचार कीजिए।
  24. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद में 'अभ्दुत तत्त्व' के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इस कथन कि 'स्वच्छंदतावादी विचारधारा राष्ट्र प्रेम को महत्व देती है' पर अपना मत प्रकट कीजिए।
  25. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद यथार्थ जगत से पलायन का आग्रही है तथा स्वः दुःखानुभूति के वर्णन पर बल देता है, विचार कीजिए।
  26. प्रश्न- 'स्वच्छंदतावाद प्रचलित मान्यताओं के प्रति विद्रोह करते हुए आत्माभिव्यक्ति तथा प्रकृति के प्रति अनुराग के चित्रण को महत्व देता है। विचार कीजिए।
  27. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- कार्लमार्क्स की किस रचना में मार्क्सवाद का जन्म हुआ? उनके द्वारा प्रतिपादित द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- द्वंद्वात्मक भौतिकवाद पर एक टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद को समझाइए।
  31. प्रश्न- मार्क्स के साहित्य एवं कला सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- साहित्य समीक्षा के सन्दर्भ में मार्क्सवाद की कतिपय सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
  33. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- मनोविश्लेषणवाद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
  35. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  36. प्रश्न- समकालीन समीक्षा मनोविश्लेषणवादी समीक्षा से किस प्रकार भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  37. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  38. प्रश्न- मार्क्सवाद का साहित्य के प्रति क्या दृष्टिकण है? इसे स्पष्ट करते हुए शैली उसकी धारणाओं पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- मार्क्सवादी साहित्य के मूल्याँकन का आधार स्पष्ट करते हुए साहित्य की सामाजिक उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
  40. प्रश्न- "साहित्य सामाजिक चेतना का प्रतिफल है" इस कथन पर विचार करते हुए सर्वहारा के प्रति मार्क्सवाद की धारणा पर प्रकाश डालिए।
  41. प्रश्न- मार्क्सवाद सामाजिक यथार्थ को साहित्य का विषय बनाता है इस पर विचार करते हुए काव्य रूप के सम्बन्ध में उसकी धारणा पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- मार्क्सवादी समीक्षा पर टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- कला एवं कलाकार की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में मार्क्सवाद की क्या मान्यता है?
  44. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  45. प्रश्न- आधुनिक समीक्षा पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- 'समीक्षा के नये प्रतिमान' अथवा 'साहित्य के नवीन प्रतिमानों को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  47. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  48. प्रश्न- मार्क्सवादी आलोचकों का ऐतिहासिक आलोचना के प्रति क्या दृष्टिकोण है?
  49. प्रश्न- हिन्दी में ऐतिहासिक आलोचना का आरम्भ कहाँ से हुआ?
  50. प्रश्न- आधुनिककाल में ऐतिहासिक आलोचना की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए उसके विकास क्रम को निरूपित कीजिए।
  51. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के सैद्धान्तिक दृष्टिकोण व व्यवहारिक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- शुक्लोत्तर हिन्दी आलोचना एवं स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  55. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में नन्ददुलारे बाजपेयी के योगदान का मूल्याकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  56. प्रश्न- हिन्दी आलोचक हजारी प्रसाद द्विवेदी का हिन्दी आलोचना के विकास में योगदान उनकी कृतियों के आधार पर कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. नगेन्द्र के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  58. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. रामविलास शर्मा के योगदान बताइए।

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